चिप्स पर चर्चा
चिप्स पर चर्चा
सेमीकंडक्टर चिप्स फ़ैब्रिकेशन: इंडिया कहां पर पहुंचा !
डॉ एसपी गौड़ भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी
ताज्जुब
होता है तेल आपूर्ति पर तो इतनी सियासत मगर तेल से भी कीमती और दुर्लभ चिप्स की
सप्लाई पर कोई चर्चा नहीं, चाहे सामान्य समय हो या युद्ध काल। बड़े औद्योगिक देश
तेल से ज्यादा चिप्स पर खर्च कर रहे हैं। चीन तेल का कुल डेढ़ गुना खर्च
सेमीकंडक्टर चिप्स पर करता है जो उसके विशाल औद्योगिक हब की रीढ है। हमारा अपना
चिप्स आयात 30 अरब डॉलर का है। वर्ष 2026 तक अपनी माँग 64 अरब डॉलर और सेमीकंडक्टर
घटकों का उत्पादन 300 अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है।
हार्डवेयर
सेक्टर के बढ़ते पिछड़ेपन से सरकार समझ गई है मात्र सॉफ्टवेयर विकास काफी नहीं।
इलेक्ट्रॉनिक्स व डिजिटल हार्डवेयर भविष्य का आधार होगा। और इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर
में उत्पादन हेतु सेमीकंडक्टर फेब्रिकेशन पहली आवश्यकता है कितनी ही मुश्किल और
महंगी क्यों न पड़े। देसी विदेशी मांग को देखते हुए, देश को इलेक्ट्रॉनिक निर्माण हब बनाना ही
होगा । परंतु इसके लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) काफी नहीं । अत: सरकार ने 15 दिसंबर
2021 की बैठक में सेमिकंडक्टर चिप्स के फेब्रिकेशन (फैब) के लिए बेहद दूरगामी
निर्णय लिये। व्यापक विकास हेतु इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आई एसएम) गठित किया। अब
सलाहकार समिति भी बना दी गई है। फैब्रिकेशन व संबंधित अवस्थापना कार्यों के लिए दस
अरब डॉलर ( ₹70000 करोड) आबंटित किये । कुछ भी करने के लिए यहां भारी निवेश और
पेचीदा टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है। अत: फैब फाउंड्री एवं डिस्प्ले डिवाइस
फैक्ट्री संबंधित पूंजी निवेश पर 50% सब्सिडी दी जाएगी। केंद्र बिंदु 28, 45 और 65
नैनो के चिप्स रहेंगे जिनकी मांग ज्यादा है। साथ ही साथ, आईटी मंत्रालय ताइवान,
दक्षिण कोरिया व अमेरिकी कंपनियों से टेक्नोलॉजी सहभागिता के लिए सतत
प्रयासरत है।
इस सेक्टर में बड़े औद्योगिक देशों की स्थिति भी जानिए। चाहते
तो सभी बड़े देश हैं कि अपनी चिप्स की माँग का डिज़ाइन, फ़ैब्रिकेशन व टेस्टिंग सभी कुछ
खुद कर ले। बड़े चिप्स के युग मेंअमेरिकी कंपनियों का पूरा बोलबाला था। अब हक़ीक़त है कि बिरले ही
सेमीकंडक्टर चिप्स का फैब कर पा रहे हैं, अमरीका भी नहीं कर रहा । चिप डिज़ाइन
अमेरिका, चीन और यूरोप की कंपनियां अवश्य करती आ रही है, दक्षिणी कोरिया और भारत भी कुछ
कुछ। फिर ये पेचीदा डिजाइन ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ( ताइवानी सेमीकंडक्टर) या सैमसंग को फेब्रिकेशन के लिए
दिए जाते हैं। 541 अरब डॉलर पूंजी की ताइवानी सेमीकंडक्टर कंपनी विश्व की चिप्स की
मांग का 70% फ़ैब्रिकेशन करती है। 5 नैनो के महीन चिप्स की
बात करें तो (बोस्टन कंसलटिंग ग्रुप के अनुसार) ताइवान दुनिया के 92% चिप्स का
फेब्रीकेशन करता है। सालों से यह कंपनियां व चिप्स निर्माण शोध और फाउंड्री विकास पर अरबों डॉलर
खर्च करते आ रहे हैं, अपनी बढ़त बनाए हुए हैं। अमेरिकी प्रतिबंध लगने के बाद चीनी
कंपनियां असुरक्षित हो गई है। वैसे भी 2018 के एक सर्वे में अमेरिका, ताइवान,
दक्षिण कोरिया, यूरोप और जापान की सेमीकंडक्टर कंपनियां टॉप दस में थी, चीनी एक भी
नहीं। हालांकि ताइवानी सेमीकंडक्टर के वयोवृद्ध संस्थापक मॉरिस चैंग इसे चिप्स उत्पादन में
वैश्वीकरण का अंत बता रहे हैं। चीनी उद्योगों में चिप्स की भारी मांग है और अपना
उत्पादन कम। अमेरिका अब अपनी सरजमीन पर ही चिप्स फैब्रिकेशन चाहता है, यूएस चिप्स
एक्ट पास किया है और इस सेक्टर मे 50 अरब डॉलर निवेश करेगा।
भारत ने
बेल्जियम के इंटर यूनिवर्सिटी मैन्युफैक्चरिंग सेंटर (आईयूएमसी ) से चिप्स
फेब्रिकेशन तकनीक के लिए करार किया है। गुजरात में प्रस्तावित वेदांता- फॉक्सकॉन
संयंत्र इसी सेंटर से टेक्नोलॉजी खरीदेगा। दूसरी घोषणा टाटा संस की है, वे
इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर दोनो सेक्टर में भारी निवेश करेंगे। यह उनकी
इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की महत्वाकांक्षा की दूरदेशी दूरंदेशी पहल होगी। तीसरी खबर
इजराइली कंपनी टावर सेमीकंडक्टर्स से आई है जो संयुक्त उपक्रम बनाकर
बेंगलुरु में फेब्रिकेशन करना चाहते हैं।
लग रहा है
भारतीय औद्योगिक जगत में हलचल आ गई है। आईटी मंत्रालय चिप्स फैब्रिकेशन उद्योग की
सफलता के लिए कमरतोड़ कोशिश मे है। देश की तकनीकी क्षमता अतुलनीय है जो देश की
सुरक्षा और विकास की हर चुनौती में जगमगायी है। राष्ट्रीय संकल्प के साए में
सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के प्रयास निसंदेह शीघ्र फलित होंगे। सॉफ्टवेयर में
सतत अग्रणी रहने वाला देश हार्डवेयर विकास में भी नए आयाम स्थापित करेगा। इसके साथ
ही भारत के आर्थिक और तकनीकी विकास का एक नया अध्याय शुरू होगा
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