चीन की घेराबन्दी और भारत का सटीक जवाब

 चीन की घेराबन्दी और भारत का सटीक जवाब

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                                                                                                          एस.पी. गौड़ (भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी) - जनवरी 2021

 

एशिया में अपने अकेले प्रतिद्वंदी भारत को चारों तरफ से घेरने के चीनी प्रयास नए नहीं हैं,  ना ही किसी से छुपे हैं। भारतीय बाजार व अर्थव्यवस्था में बड़े निवेश की चीनी मुहिम को भी शंकित दृष्टि से देखा जा रहा है ।  पड़ोसी देशों को साम दाम दंड भेद से फुसलाना और वास्तविक नियन्त्रण रेखा तोड़ कर भारतीय क्षेत्र में घुसने की हरकतें  जारी है। ये सभी गतिविधियां एक बड़ी चीनी रणनीति के अभिन्न अंगो के रूप में उभर रही हैं ।

 एक पेंटागन रिपोर्ट £ में 350 समुद्री पोतों की चीनी नौसेना को दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना  बताया गया है।  वह पूरी दुनिया में बंदरगाहों और मिलिट्री अड्डों का एक जाल बिछाने में लगा है। स्वेज कैनाल के मुहाने पर स्थित जिबूती @ में चीनी सेना ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के नाम पर मिलिट्री अड्डा  तैयार किया है।  श्रीलंका को  ऋण लौटाने में असमर्थ देख उस ने  हंबनटोटा बंदरगाह  99 वर्षों की  लीज पर ले  लिया है।  मुंबई बंदरगाह  के मुहाने से कुछ दूर बलूचिस्तान का  ग्वादर पोर्ट से चाइना पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर (सीपीईसी) बनाया जा रहा है, ग्वादर पोर्ट की पहली फ़ेज़, सभी विद्युत परियोजनाएं और कुछ हाईवे पूरे हो  गए है। नेपाल से चीनी सेना प्रमुख ने हाल ही में सैनिक प्रशिक्षण,  5 जी- टेक्नोलॉजी तथा सैन्य साजों सामान आपूर्ति  का करार किया है । बांग्लादेश को चीन ने एक बड़ा  क्रेडिट देने का वायदा किया है । ईरान और रूस से उस के  मजबूत व्यवसायिक और मिलिट्री संबंध बने  हैं। अब वह इंडोनेशिया थाईलैंड म्यानमार, यूएई, कीनिया, तंजानिया आदि देशों में सैनिक सुविधाएं स्थापित करने के फिराक में है। इस प्रकार भारत को सामुद्रिक रूप से चौतरफा घेरने का पूरा खाका बनाकर उस पर काम हो रहा है। 

 

चीन की एक-बेल्ट-एक-रोड (ओबी ओआर) पहल, ब्रह्मपुत्र पर  विशाल बांध के निर्माण की घोषणा और लहासा से  मेनलैंड चीन तक रेलवे निर्माण के बाद अरुणाचल सीमा के समानांतर दूसरी रेलवे लाइन का प्रस्ताव,  नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं व सीमा विवाद का भड़काना, पाकिस्तान को  वरद हस्त प्रदान कर आतंकवादियों का बचाव, आणविक तकनीक तथा सैन्य सामान आपूर्ति भारत के विरुद्ध सामरिक घेराव के चीनी  इरादों  को उजागर करते है। 

 

जून 2020 में लद्दाख की  गलवान घाटी की झड़प के बाद चीनी सामान का बहिष्कार होने पर  चीनी सामान पर भारत  की निर्भरता  का सही परिमाण सामने आया है ।  लोग  सुबह टूथब्रश से लेकर क्रोकरी, विभिन्न औजार, कपड़े आदि अधिकतर चीन में बना या उसके कच्चे माल से बना सामान इस्तेमाल करते है । भारत के मोबाइल फोन का तीन चौथाई मार्केट, एनएचएआइ व भारतीय रेल आदि कंपनियों की  विशाल परियोजनाओं  के कॉन्ट्रैक्ट,  स्टील एवम बैटरीयों हेतु लिथीयम  की आपूर्ति, दवाओं का कच्चा माल (एपीआई), एमजी कार को सस्ते क़ीमत पर   बाजार मे उतारना  एवं प्राइवेट बैंकों व  संस्थानों ( जैसे एचडीएफसी  वेल्थ) में चीनी कंपनियों की बढ़ती हिस्सेदारी उल्लेखनीय है । दीपावली उत्सव पर अरबों रुपए के चीनी खिलौने, पटाखे आदि सामान बिका हालांकि इस बार खपत कम रही।  

 एक अखबार $ में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्याम शरण  ने लिखा कि चीन ने बरसों की मेहनत से विकसित अमरीकी टेक्नोलॉजी तथा हथियारों के रहस्यों का हैकिंग किया है। इस षड्यंत्र में चीनी मूल के अमेरिकी नागरिको और विश्वविद्यालयों के चीनी आचार्यों का हाथ रहा। अतः मान के चला जाए कि भारत के गूढ़ व्यावसायिक तथा सैन्य  रहस्य चीन की  हैकिंग और जलमग्न ड्रोनों से बचें न होंगे और सभी संवेदनशील जानकारी उस तक पहूँच रही होगी।

 

यह तो अदृश्य  जासूसी गतिविधिया  रही, चीनी जासूसों की गतिविधियाँ भी अखबारों ** में पढ़ने को मिल रही है। सर्वविदित है कि कम्युनिस्ट चीन ने सन 60 और 70 के दशक में नक्सलवाद को खुलेआम मदद दी।  नक्सलवाद आज भी तेलंगाना छत्तीसगढ़ आदि क्षेत्रों में भयंकर रूप धारण किए हैं। मेरठ सिलिगुड़ी जैसे सैन्य छावनी क्षेत्रों वाले शहरों में चीन जासूस पकड़े गए हैं । ये बड़ी जासूसी  नेटवर्क का हिस्सा हो सकती है । भारत सरकार को ऐसी गतिविधियों को गंभीर मान कर कड़ी कार्यवाही करनी होगी। पहले भी कम्युनिस्ट चीन ने  नक्सलबाड़ी आंदोलन को उभारा  है जो देश के कुछ हिस्सों में विकराल रूप धारण कर चुका है।

 

 चीन भारत के निर्माण कार्य, उद्योग, बैंकिंग,  व्यापार में निवेश, कार्य निविदाओ आदि के माध्यम से  दखल रख रहा है।  उसकी भारतीय क्षेत्र में गाहे-बगाहे  घुस कर   वास्तविक नियंत्रण रेखा खिसकाने की नियत  रहती है।  वर्तमान सरकार की संजीदगी,  सतर्कता और आत्मनिर्भरता की नीति से चीनी हरकतों में सचमुच कमी आई है। वुहान वायरस से चरमराई अर्थव्यवस्था के साथ भारत ने चीन से युद्ध टाल कर ठीक किया।   इस दीपावली पर चीनी सामान के बहिष्कार से बिक्री में  ₹400 करोड कमी का अनुमान है।  राष्ट्र मार्गो तथा रेल मार्गों की कई बड़ी प्रोजेक्ट चीनी कंपनियों के हाथ से निकल गई हैं।  कुछ समझौते बेअसर हुए हैं। चीनी निवेश के नियंत्रण  हेतु सरकार ने पड़ोसी देशों के संस्थागत निवेश के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक कर दी है। औद्योगिक, रक्षा उपकरणों, मीसाइल तकनीक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर ता की नीति से और चीनी  आयात निर्यात के वैकल्पिक बाज़ार प्रबन्धन से विश्व में भारत का  क़द बढ़ रहा है।  साथ ही आरसीईपी से बाहर रहकर भारत ने बुद्धिमानीपूर्ण  फैसला किया है। नीति विशेषज्ञ इसे चीन के एक-बेल्ट-एक-रोड का ही अंग  बता रहे है। यद्यपि कुछ भारतीय विशेषज्ञ अन्य सरकारी नीतियों की तरह इसकी भी आलोचना कर रहे हैं।  देखना होगा कि ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ हमारे व्यापारिक और सैनिक संबंधों के चलते आरसीईपी से उन्हें क्या हासिल होता है । वर्ष 2020 में चीन ऑस्ट्रेलिया के बीच एक व्यापारिक लड़ाई  शुरू हो गई है । ऑस्ट्रेलिया ने वुहान वायरस के मूल उद्गम  की पश्चिमी देशों की मांग का समर्थन किया था l चीन ने उसे सबक सिखाने के लिए उसके आयात पर  प्रतिबंध लगाए  जिसका जवाब  आस्ट्रेलिया ने चीनी सामान पर  पाटनरोधी शुल्क लगाकर दिया।   अब देखना है कि आरसीईपी क्या स्वरूप धारण करता  है।

 

 चीन दक्षिण चीन सागर के कुछ द्वीपो को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले के विरुद्ध हथियाने में सफल जरूर हो गया है परन्तु प्रसारवादी नीतियों के कारण कई  देश उसके खिलाफ हो गए हैं।  उसे कोविद छुपाए रखने तथा  दुनिया भर में फैलाने हेतु भी जिम्मेदार माना गया है  अमेरिका ने खुलेआम  इसे वुहान वायरस बताया है।  विश्व में कोविड-19 से दिसबर 2020 तक 18  लाख से अधिक मौते हुई है।  

 

भारत-अमेरिका के 2+2   बेसिक एक्सचेंज और कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) तथा चतुर्पक्षीय क्वॉड  समूह भविष्य में भारत की स्थिति मजबूत करेंगे । पिछले मालाबार नौसेना अभ्यास में अमेरिका जापान और भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया पहली बार सम्मिलित हुआ । अप्रैल 2020 में कोविद-19 वाइरस  की जाँच की माँग करने पर  चीन  ऑस्ट्रेलिया को सबक सिखाने पर तुल गया है, उनमें व्यापारिक लड़ाई छिड़ गई  है। अतः ऑस्ट्रेलिया भारत सम्बंध और प्रगाढ़ होंगे, व्यापारिक, सामरिक और शैक्षिक क्षेत्रों में नई पहल होंगी। चीन के आक्रामक रवैये से  क्षुब्ध ऑस्ट्रेलिया भारत जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ाने का उपक्रम करेगा। भारत और ऑस्ट्लिया ने आपसी सामरिक प्रोग्राम (सीएसपी)  के अन्तर्गत “पारस्परिक लजिस्टिक्स सपोर्ट प्रबन्ध” पर हस्ताक्षर किए हैं, अब दोनों देश अंडमान द्वीपसमूह और ऑस्ट्रेलिया के कोकोस द्वीप को  सैन्य अड्डों के रूप में कर सकेंगे । क्वाड से  संयुक्त अभ्यास से आगे जा कर  हिंद प्रशांत क्षेत्र में चारों देशों की सामरिक नीति और व्यापार में  यथासंभव एकात्मकता आएगी। भारत को चीन के विरुद्ध मजबूती से खड़ा करने से अमेरिका का रणनीतिक फायदा भी है । सभी परिस्थितियों पर विचार कर अमरीकी सेनट ने राजा कृष्णमूर्ति नामक  क़ानून पास कर भारत पर चीनी हमले की आलोचना की है। वर्ष 2020 चीन के लिए बुरा साबित हुआ है, विश्व में उसकी साख  गिरी  है।  अंतरराष्ट्रीय समीकरण अन्ततः भारत के पक्ष में बन रहे हैं।  

 

इस प्रकार, चीन के आर्थिक और सैन्य रूप से घेरने के  प्रयासों के विरुद्ध भारत मित्र देशों के साथ निसंदेह एक जुझारू ताकत के रूप में खड़ा है । अंतरराष्ट्रीय विरोध  के चलते अगले 10 सालों का औद्योगिक और रणनीतिक सफर चीन के लिए इतना  सुखद नहीं होगा जितना पिछला दशक में  रहा । चीन समझ गया है कि विकास का  निर्यात केंद्रित मॉडल आगे साथ नहीं देगा अतः वो घरेलू माँग आधारित रणनीति बनाने में जुट गया है। भारत ने भी अपनी रणनीति में भारी परिवर्तन कर हिंद-प्रशांत, पश्चिमी एशिया, रूस और अमेरिका से संबंधों को भरपूर व्यावहारिक बनाया है।  उदाहरण के लिए भारत ने खाड़ी के प्रत्येक देश एवम् इसराइल के साथ द्वीपक्षीय हितो पर आधारित दूरगामी समझौते किए हैं। जब कि अभी तक खाड़ी के अधिकतर मुल्क  पाकिस्तान का साथ देते रहें हैं । इन देशों के साथ और पड़ोसी देशों के साथ भारत के व्यापार,  सहयोग एवं भागीदारी की व्यवहारिक रणनीति के परिणाम जल्दी सामने आएंगे।  संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि चीन भविष्य में विश्व शक्ति बने तो बने भारत भी  दुनिया की एक बड़ी ताकत बन कर चीन की घेराबन्दी का सटीक जवाब देगा  ।  

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£ टीएनएन दि. ३ सितंबर 2020; 

 दी गारजियनचीन सैन्य अड्डों की एक श्रृंखला बनाएगा:  पेंटागन; 3rd  मई 2019

**अभिजीत भट्टाचार्य: एशियन एज दिo 30 नवंबर 2018; 

$ इंडियन एक्सप्रेस दि. 12 जून 2019

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