सायबर हैकिंग -विश्वयुद्ध का साया
सायबर हैकिंग -विश्वयुद्ध का साया
डॉ एसपी गौड, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में गुप्तचर संस्थाओं को संबोधित करते हुए में एक बड़े खतरे का आगाज किया," ... यदि एक बड़ी ताकत ( समझिए चीन) के साथ हमारा युद्ध होता है, तो यह साइबर हमलों के कारण होगा औरइसकी संभावना लगातार बढ़ रही है।" चीन की सबसे बड़ी सैन्य ताकत और आर्थिक ताकत बनने की उत्कट अभिलाषाको उन्होने बहुत खतरनाक बताया । आगे उन्होंने अमरीकी ग्लोबल महाबली गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेजॉन से साइबरहैकिंग पर मंत्रणा की है।
याद करिए मई 21 में कॉलोनियल पाइपलाइन पर साइबर हमला होने पर अमरीका ने आपातकाल घोषित कर स्थितिसंभाली थी। इस 8850 कि मी लंबी पाइप लाइन से टेक्सास से पूर्वी तटीय शहरों को 25 लाख बैरल डीजल, पेट्रोल वजेट ईंधन की आपूर्ति प्रतिदिन होती है। बीबीसी के अनुसार पूर्वी यूरोप के डार्कसाइड नामक ग्रुप ने कंपनी का डाटा हैककिया और लीक की धमकी देकर $ 5 मिलियन की फिरौती वसूली। ऐसे फिरौती वसूली का यह सनसनीखेज मामला है।
अमेरिकी प्रशासकों ने रूस से तो तालमेल बैठा ली है और उन विषयों का लेनदेन होता रहता हैं जो साइबर हैकिंग से बाहररहे । चीन के साथ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। राष्ट्रपति बयान को इसी परिपेक्ष में देखना होगा। चीन की मंशा के बारे मेंशक होना नहीं चाहिए - अभी 21 अगस्त को पी एल ए ने बहुपरतीय रक्षात्मक प्रणाली को भेदकर दुश्मन की संचारव्यवस्था को बर्बाद करने वाली मिसाइल टेस्ट की है जो जापान ताइवान और अमेरिकन ठिकानों के विरुद्ध बखूबीइस्तेमाल की जा सकती है।विश्व व्यवस्था को देखते हुए दो महा शक्तियों का युद्ध सीमित न रहकर पूरी दुनिया में फैलेगा
। ऐसे में भारत की स्थिति विचारणीय है।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल रावत ने विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में बोलते हुए स्वीकारा था कि चीन भारत पर साइबर हमले हेतु सक्षम है। 12 अक्टूबर 2020 को मुंबई के ब्लैक आउट से लोकल ट्रेन, अस्पताल और समूचा जनजीवन प्रभावित हुआ। कोहराम मचने पर ब्लैकआउट समाप्त कर दिया गया। अमेरिकी रिकॉर्डेड फ्यूचर कंपनी ने बाद मेंखुलासा किया- रेड ईको चीनी ग्रुप 10 महीनों से भारतीय ऊर्जा केन्द्रों को निशाना बनाए था । चीन इसी अंदाज से यूरोपमें भी साइबर हमले कर चुका है। शरीर की एमआरआई स्क्रीनिंग की तरह ये हमले सिस्टम की पूरी जानकारी जुटा लेते हैं।अर्न्स्ट और यंग (ई & वाई) ने 124 सीएक्सओ के एक सर्वे में पाया कि 75% प्रमुख कंपनी के साइबर सुरक्षा सिस्टमविश्वसनीय नहीं मानते। आईआई टी कानपुर के प्रो संदीप शुक्ला को डर है कि मुंबई हमले के बाद चीनी मैलवेयर अभीभी भारतीय प्रणाली में मौजूद है जिस का दुष्प्रयोग कभी भी किया जा सकता है।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री श्याम शरण ने पिछले साल एक अंग्रेज़ी अखबार में लिखा था कि चीन लगातारअमरीकी शोध कार्यों एवं टेक्नोलॉजी को हैक करता है जिसमें अमेरिका में कार्यरत चीनी प्रोफेसर और नागरिक मददकरते हैं। चीनी 5G कंपनी हुआवेई पर गम्भीर आरोपों के बाद अमरीकी प्रतिबंध लगाए गए । दूसरी तरफ चीन ने साइबरउपकरण, ज्ञान विज्ञान और तकनीक में भारी निवेश किया है। दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट अखबार के अनुसार हांगकांग सेलगे ग्रेटर बे एरिया में भारी निवेश और सक्रिय नीति के चलते 43 स्टार्टअप कंपनिया स्थापित हुई जिनका मार्केट कैप $1.1 बिलियन है। हुआवाई कंपनी को इस क्षेत्र के विकास की बागडोर देकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग बहुत उम्मीदें लगाए हुए हैं।
भारत में 2013 से लागू राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति या राष्ट्रीय क्रिटिकल सूचना इंफ्रास्ट्रक्चर सुरक्षा केंद्र विशेषज्ञों कीराय में चीन के सामने कहीं नहीं ठहरती। रिटा लेo जनरल हुड्डा की राय में भारत को तुरंत प्रभावी व मज़बूत साइबर सुरक्षानीति और और मूलभूत व्यवस्था बनानी चाहिए। इसके लिए आधुनिक उपकरण, प्रशिक्षित स्टॉफ और अनवरत सतर्कताकी जरूरत है ।
रक्षा विशेषज्ञ साइबर हैकिंग को परमाणु युद्ध से अधिक खतरनाक बता रहे है । परमाणु हथियार सरकारों के नियंत्रण मेंहैं और सरकारों के बीच में हमेशा हॉट लाइन रहती है चाहे वह क्यूबा मिसाइल संकट रहा हो या कोरिया संकट। इसकेविपरीत, साइबर हैकिंग कोई भी जिम्मेदार गैर जिम्मेदार संस्था कर सकती है- कुछ उपकरण जुटाकर। आज भी यूजर वहीगिने चुने कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करते हैं। स्मार्ट छोकरा जो कोड्स के साथ छेड़छाड़ या हार्डवेयर की चीरफाड़ कर सकता है साइबर हैकिंग में कामयाब हो जाएगा। दूसरी खतरनाक हक़ीक़त: साइबर हैकर तक पहुंचना असंभवहै। कई देश ऐसी जासूसी संस्थाएं बनाए हैं या प्राइवेट संस्थाओं से जासूसी करा रहे है मगर कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
परंपरागत रक्षा पद्धति में पैंतरा बदल कर हमने पहली बार पाकिस्तान के विरुद्ध रक्षात्मक छोड़ आक्रामक मुद्राअख्तियार की । इसी ज़ज़्बे के साथ हमें साइबर सुरक्षा नीति को आक्रमक बनाना है। कुछ छोटे देश अपनीजियोपोलिटिकल स्थिति का फायदा उठा कम साधनों के बावजूद भी आक्रामक मुद्रा में रहते हैं। ताइवान ने केवलसेमीकंडक्टर्स निर्माण कंपनी की बदौलत अपना विशेष स्थान बनाया है। औद्योगिक निर्माण में आधुनिक चिप्स कीबढ़ती मांग की 84 % आपूर्ति यह कंपनी करती है। अमेरिका का एप्पल हो या चीनी अलीबाबा इसी के चिप्स इस्तेमालकरते हैं। समझिए ताइवान पर अमेरिका और चीन आमने सामने क्यों है?
हमें अपने मित्र देशों से शक्तिशाली सैन्य व असैन्य टेक्नोलॉजी व साजो सामान खरीदना होगा । इस प्रणाली का अभिन्नसंबंध पांचवी पीढ़ी की 5G टेक्नोलॉजी के विकास से है जिस पर भारत मुस्तैदी के साथ लगा है। एयरटेल नोकिया औरएरिकसन तीनों भारत में 5G उपकरण बना रहे हैं जल्द ही 5G नेटवर्क चारों तरफ होगा। इसके बावजूद दुश्मन की चुनौतीके सामने हमारी तैयारियां फीकी लगती है।
जब चीन अमेरिका जैसे शक्तिशाली और प्रौद्योगिकी संपन्न राष्ट्र के रहस्य चुरा सकता है तो हमारा मुल्क कहां ठहरता है।वस्तुत: हम ऐसे दुश्मन से जूझ रहे हैं जिसके साथ साम दाम दंड भेद की नीति अपनानी होगी। सीमा पर शांति, व्यापारअसंतुलन में सुधार, हिंद प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम व जापान से संबंधों में प्रगाढ़ता परंतु प्रौद्योगिकी युद्ध परपुरजोर प्रयास । सरकार कुछ हद तक यह बात समझ चुकी है परन्तु सक्षम तैयारियां होनी है।
चीन और अमेरिका में आज का मुकाबला मिलिट्री मोर्चे पर नहीं बल्कि टेक्नोलॉजी फ्रंट पर सिमट रहा है। । भारत समेतकई देशों ने टिक टॉक व 200 चीनी एप प्रतिबंधित किए हैं क्योंकि चीन में प्राइवेट कंपनियां सरकार को सूचना देने केलिए बाध्य है। चीनी साइबर हैकिंग का लक्ष्य भी अंततः टेक्नोलॉजिकल फ्रंट की मजबूती है।
आधुनिक संचार प्रणाली आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए निर्णायक सिद्ध हो रही है, अत: इस नए परंतुअभिन्न आयाम को अनदेखा नहीं कर सकते। अमेरिकी राष्ट्रपति की बात से स्पष्ट है भविष्य की लड़ाइयां टेक्नोलॉजिकलफ्रंट पर लड़ी जाएंगी सैन्य मौर्चे पर लड़ाई बाद में पहुंचेगी।
आधुनीकरण के लिए निवेश और नवीनतम टेक्नोलॉजी कैसे आएगी? बुलेट ट्रेन का निर्माण महंगा है परंतु कब तकभारतीय रेल घिसी पिटी पटरियों पर दौड़ती, यह टेक्नोलॉजी देर सवेर आ ही रही है! हम अगर राफेल बना नहीं सकते तोफ्रांस से खरीदे वर्ना वायुशक्ती की कतार में पीछे खड़े होंगे। यही तर्क चिप निर्माण टेक्नोलॉजी पर सही उतरता है चाहेचिप फाउंड्री की कीमत $ 20 बिलियन ही क्यों न हो! हर उपकरण लघु से लघुतर हो रहा है। हमारी गतिशीलअर्थव्यवस्था के हर सेक्टर में -कारें, उद्योग, निर्माण, ऑनलाइन शॉपिंग, शोध, अंतरिक्ष विज्ञान, टेलीकॉम उपकरण, कंप्यूटर्स हो या मोबाइल फोन, आधुनिक चिप्स की मांग बेइंतहा बढ़ रही है। टाटा ने चिप निर्माण उद्योग में प्रवेश की मंशाजाहिर की । उसके बाद 20 अगस्त 21 को कॉमर्स मंत्री श्री पीयूष गोयल ने सेमीकंडक्टर उद्योग स्थापित करने में सरकारकी मदद की घोषणा की । निवेश भारी है परंतु अर्थव्यवस्था के संक्रमण काल में आधुनिक टेक्नोलॉजी प्राप्त करनी हीहोगी।
इस खुशहाल देश को अंग्रे ज़ी शोषण ने गरीब पंगु और बदहाल स्थिति में छोड़ा था। अपने बूते पर देश ने बड़े कारखाने, विश्वविद्यालय, शोध संस्थाएं, अंतरिक्ष विज्ञान व मिसाइल प्रौद्योगिकी केंद्र, बड़ी आयुध फैक्ट्री, सिंचाई बांध और पावरहाउस, आणविक पावर केंद्र तथा अणु बम का निर्माण किया है। डॉ वीके सारस्वत पूर्व डीआरडीओ प्रमुख ने स्वीकाराकि भारत में सिक्योरिटी विशेषज्ञों की भारी कमी है जिसके लिए साइबर सिक्योरिटी पर त्वरित शोध कार्य, अंडर ग्रेजुएटसे पीएचडी तक के लिए पाठ्यक्रम, नेटवर्क पर एमओओसी की सहायता से शिक्षा देनी होगी। उन्होंने राज्य स्तर पर औरराष्ट्रीय स्तर पर पीपीपी मॉडल से शिल्पजनित बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग पर आधारित स्मार्ट सिक्योरिटीसमाधान निकालने का सुझाव दिया है।
साइबर पीस फाउंडेशन के प्रमुख विनीत कुमार की सलाह है कि अमेरिका और चीन की तरह भारत भी बचपन से हीप्रतिभा पहचान कर उन्हे साइबर विशेषज्ञ बनाए। आईआईटी और एनआईआईटी के साथ साथ, छोटे विश्वविद्यालयों मेंभी प्रतिभाओं को खोज निकालें । साइबर सुरक्षा टेक्निकल काडर की स्थापना से रफ्तार मिलेगी, इच्छुक छात्र छात्राएंवर्षों इस की पढ़ाई करेंगे।
नीतिगत होने पर 5G टेक्नोलॉजी, स्मार्ट साइबर सुरक्षा हेतु आवश्यक निवेश व टेक्नीक की व्यवस्था हो जायगी। स्थितिगंभीर हो गई है जिसके संस्थागत निदान निकालने पड़ेगे। रक्षा प्रतीवारक (डेटेरंट) की तरह ही हैकिंग के विरूद्ध प्रतिवारकस्थापित करने होंगे।
इसका ना तो कोई विकल्प है और ना ही इनके बिना देश की सीमाओं की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था का विकास संभव है।अत: पूरी तैयारी करनी है कि अगले विश्वयुद्ध में हम शिकार ना बने न हीं हाथ बांधे बैठे रहे।
Comments
Post a Comment